एक पुरानी कथा के अनुसार माँ पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए हज़ारों वर्षो तक तपस्या की थी।
इस कठिन तपस्या के फल स्वरुप उन्होंने शिव जी को तो पा लिया पर तप के प्रभाव से उनका रंग सावला हो गया।
एक बार भगवान् भोलेनाथ ने हसी मज़ाक़ माँ पार्वती को काली कह दिया।
यह बात माँ पार्वती को इतनी बुरी लग गयी की उन्होंने कैलाश त्याग दिया और जंगल में जेक तप करने लगीं।
उनकी इस कठिन तपस्या के दौरान वह एक भूखा शेर आ गया और माता को तपस्या में लीन देख कर वही बैठ गया।
माँ पारवती ने तो ज़िद हे पकड़ ली थी की जबतक वह गोरी नहीं हो जाएँगी तब तक तप करती रहेंगी।
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शेर भी माता के साथ वर्षों तक वही बैठा रहा। अंत में शिव जी प्रकट हुए और माता को गोरी होने का वरदान दिया।
उसके बाद माँ पारवती गंगा स्नान करने गयी तो उनके अंदर से एक और देवी प्रकट हुई और माँ पारवती गोरी बन गयी।
जब माता वह से वापस लौट रही थी तो उन्होंने देखा की वह एक शेर बैठा हुआ है जो सिर्फ उनको हे देखे जा रहा है।
फिर माता को ध्यान आया की ये वही शेर है जो तपस्या के समय उनके साथ था।
तो माता ने उस शेर को वरदान दिया और अपना वहां बना लिया।